दोपहर की धूप से बचने
मेरे कमरे मे आना
वो तेरा एक बहाना था।
पास तुम तो थी
वरना सब अफसाना था।
तेरी जुल्फों की छांव में
तेरी गोद में सर रखना
वो तेरा एक बहाना था।
पास तुम तो थी
वरना सब अफसाना था।
मेरे कमरे मे आना
वो तेरा एक बहाना था।
पास तुम तो थी
वरना सब अफसाना था।
तेरी जुल्फों की छांव में
तेरी गोद में सर रखना
वो तेरा एक बहाना था।
पास तुम तो थी
वरना सब अफसाना था।
मेरे बालों को सहलाना
साथ मेरे हमेशा रहना
वो तेरा एक बहाना था।
पास तुम तो थी
वरना सब अफसाना था।
आज भी वो तपती दोपहर है
आज भी है वो मेरा कमरा
आज भी है वो मेरा कमरा
आज भी है एहसास तेरा,
पर...पास नहीं हो तुम,
बस...अब सब फसाना है।
पर...पास नहीं हो तुम,
बस...अब सब फसाना है।
आपका अपना
नीतीश राज
बहुत सुन्दर, नितिश..आनन्द आ गया.
ReplyDeleteक्या बात है हजूर ..हमें लगा इंडिया की हार के गम में तुम कई दिन कंप्यूटर से दूर रहोगे ...ये अंदाज भी निराला है
ReplyDeleteनीतिश भाई....बेजोड़ कविता...वाह.
ReplyDeleteनीरज
गज़ब!साब आप तो अखरोट निकले।
ReplyDeleteखुशी की बात है कि आपने यह राज जाना है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आप का फ़साना बहुत सुंदर लगा, बस हम तो वाह वाह ही कहेगे.
ReplyDeleteलाल अक्षर के कारण कठिनाई से पढ़ पाया। रचना अच्छी लगी।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत-बहुत ख़ूबसूरत
ReplyDeleteनीतिश जी ,
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा आपने ....बधाई ......!!
... प्रभावशाली रचना !!!!
ReplyDeleteमुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने! अब तो मैं आपका फोल्लोवेर बन गई हूँ इसलिए आती रहूंगी!
ReplyDeleteमेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है-
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kya baat hai sir ji . padhkar maza aa gaya .. waah shaandar kavita ...
ReplyDeletebadhai
vijay
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वरना सब अफसाना था।
ReplyDeleteवाह...बहुत खूब
खुशनुमा अहसास है }। बधाई -शरद कोकस दुर्ग.छ.ग.
ReplyDeletebehad khoobsurat kavita baki sab afsana hai.......
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