कहां फना होगया....।
वो ढलती शामें
जब आती थी शबाब पर
तब होता था मिलना
हमारा-तुम्हारा।
कहां खो गया....।
वो ढलती रातें
जब होती थी उफान पर
वो छलकाना जाम
हमारा-तुम्हारा।
कहां गुम हो गया....।
लालिमा लिए आसमां
ढलती रात के साए में
तेरे आंगन में, होता था साथ
हमारा-तुम्हारा।
‘राज’ कहां फना हो गया
साथ हमारा-तुम्हारा।
आपका अपना
नीतीश राज
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति ’राज’/ बधाई!!
ReplyDeletesunder ahsaas hai....khone mat dijiye
ReplyDeleteबढिया रचना है।बधई।
ReplyDeleteबहुत खूब
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