यदि पसंद है तो हमसफर बनें

21 May, 2009

कहां फना होगया....।



कहां फना होगया....।
वो ढलती शामें
जब आती थी शबाब पर
तब होता था मिलना
हमारा-तुम्हारा।

कहां खो गया....।
वो ढलती रातें
जब होती थी उफान पर
वो छलकाना जाम
हमारा-तुम्हारा।

कहां गुम हो गया....।
लालिमा लिए आसमां
ढलती रात के साए में
तेरे आंगन में, होता था साथ
हमारा-तुम्हारा।

‘राज’ कहां फना हो गया
साथ हमारा-तुम्हारा।

आपका अपना
नीतीश राज

4 comments:

पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है।