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05 August, 2008

डरता हूं मैं, उस मजाक से


अंधेरे में पड़ा मेरा मन
पूछता है मुझसे,
क्यों सैलाब की तरह जलता है
कंदराओं में।

निकल जा बाहर
इस घुटन से
इस तड़प से।

फिर सोचता है
मेरा मन,
निकल गया बाहर
तो उड़ेंगी धूल राहों में।

पूछ कर फासला
मेरी मंजिल का,
उड़या था मजाक किसी ने मेरा,
डरता हूं मैं, उस मजाक से।
कहीं फिर से, उड़े ना मजाक
मेरे ख्यालों-विचारों के गहरे समंदर का।
डरता हूं मैं।
आपका अपना
नीतीश राज