धुली-धुली सी सुबह
कोहरा कुछ, कुछ हटा हुआ
बादलों के बीच से
सूरज की चमकती किरणें,
भर दें एक अहसास नया
जो दे मन को विश्वास नया।
नव वर्ष के मौके पर सभी को मेरी तरफ से हार्दिक बधाई।
नव वर्ष मंगलमय हो।
आपका अपना
नीतीश राजमेरे शब्द हैं मेरी कविता, मेरी कविता है मेरी रूह, और शब्दों में पिरो रहा हूं, अपने और अपने शब्दों की रूह।।
बिस्तर पर मैं,
तकिया-चादर लगाए,
सिरहाने से उठता धुआं
एश्ट्रे से, सिगरेट का।
छूता,
उत्तर-दक्षिण वेयतनाम को
बांटता लाल झील को
वहीं, थोड़ा पास ही
बिखरे सिगरेट के
खुले-अधखुले पैकेट।
एक कोना
आज-कल-बरसों की खबरों का।
ठीक जेल में उठे रोटी के अंबार
की तरह रखे अखबार।
दिन-ब-दिन उन पर
चढ़ती धूल की परत,
फिर भी एहसास कराते
अपनी मौजूदगी का।
कुछ ऊंचाई पर लगी रस्सी
अपने उपर सहती बोझ कपड़ों का
और सहती,
उनमें से उठती बदबू को।
एक कमरा छोटा सा, अपना सा
जिसमें रहता था कभी मैं।
आपका अपना
नीतीश राज
(खूब कोशिश की अपनी ही फोटो लगाऊं लेकिन लगा नहीं पाया, अपलोड होने में दिक्कत दे रही थी, तो इसी से काम चलाइए।
फोटो साभार-गूगल)