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17 December, 2008

निशान ‘ताज’ की दीवार का



धर्म का ना जात का
हजारों के आघात का
क्यों पनप रहा ये ज़हर
इंसानी जज़्बात का।

करता है छेद लाखों
दिल में मेरे,
जब भी देखता हूं
निशान ‘ताज’ की दीवार का।


आपका अपना
नीतीश राज


(फोटो साभार-गूगल)

5 comments:

  1. ab to nishan hee baki hain hamare leadron ko sharminda karne ke liye. narayan narayan

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  2. "अत्यन्त मार्मिक.."

    regards

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  3. यह निशान तो हमेशा याद रहेगा अब ...

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  4. अच्छी,सच्ची और दिल को छू लेने वाली रचना।

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  5. अत्यन्त मार्मिक कविता लिखी आप ने .
    धन्यवाद

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