यह एहसास हुआ है
यूं ही इन दिनों, अचानक,
दुनिया कुछ दिनों में
बीसवीं सदी की केंचुली को
उतार फेंकने वाली है।
हर कोई बीसवीं सदी से
छुटकारा पाने को उतारु है,
जैसे,
कोई, अपने मैले-कुचले कपड़ो से।
मैं तो नहीं था तब
जब आई थी बीसवीं सदी,
कुछ लोग उठा लाए थे,
उन्नीसवीं सदी को साथ अपने
थे उनमें से कुछ
मीर, ग़ालिब, मूमिन, जौंक, मुसहफी।
समय की छलनी में बीसवीं सदी
को छानने बैठा हूं,
छेद कुछ इतने बड़े हो गए
सदी की छलनी के,
मीर भी देखो,
ग़ालिब भी देखो,
फिसल रहे हैं,
इक्कीसवीं सदी की छलनी से।
आपका अपना
नीतीश राज
(सभी के लिए नव वर्ष शुभ हो।)
बहुत ही सुंदर कविता लिखी है आप ने .
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सही कहा आपने......यथार्थपरक इस सुंदर रचना हेतु साधुवाद.
ReplyDeleteसही लिखा आपने सुंदर अभिव्यक्ति है
ReplyDeleteक्या बात कही आपने बहुत खूब।
ReplyDelete"समय की छलनी में बीसवीं सदी
ReplyDeleteको छानने बैठा हूं..."
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है, बधाई!
अच्छी कविता है!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता ....
ReplyDelete"समय की छलनी में बीसवीं सदी
को छानने बैठा हूं..."
यथार्थपरक सुंदर अभिव्यक्ति ...!!
aapki baatein bilkul sahi hain
ReplyDeleteBaat me dum hae boss... but you forgot all, just open following URL and start earn money its free
ReplyDeletehttp://www.fineptc.com/index.php?ref=vineet019