मेरे शब्द हैं मेरी कविता, मेरी कविता है मेरी रूह, और शब्दों में पिरो रहा हूं, अपने और अपने शब्दों की रूह।।
यदि पसंद है तो हमसफर बनें
02 October, 2008
मेरे चमन को लगी ये किसकी नजर
मेरे चमन को लगी ये किसकी नजर,
किसने फैलाई दहशत की आग,
गुलशन मेरा खामोश कर दिया,
फैला के हर जगह, खौ़फ की हवा।
आज तड़के आए थे सब अपने,
पूछने मेरे दिल का हाल,
अपने ही लगे गुनहगार मुझे,
अपनों पर ही न किया ऐतबार।
ऐ खुदा, ऐ मौला, ऐ परवरदिगार मेरे,
बख्श मेरी आंखों पर, अक्ल की चादर,
कर सकूं, सब अपनों पर यंकी मैं,
कर सकूं खुद पर ऐतबार।
आपका अपना
नीतीश राज
(फोटो-सभार गुगल)
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मार्मिक कविता... बधाई।
ReplyDeleteआज गान्धी जयन्ती है... राष्ट्रपिता को नमन्।
...अपनों से अब एतबार खत्म हुआ जाता है ..कैसा माहौल है यह अब ..अच्छी लगी आपकी यह रचना
ReplyDeleteas ususal a good poem nitish
ReplyDeleteबहुत बढिया ।
ReplyDeleteआपकी रचना बहुत भावुक है। बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteएक अच्छी कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteगजल की क्लास चल रही है आप भी शिरकत कीजिये www.subeerin.blogspot.com
वीनस केसरी
अति सुन्दर रचना,
ReplyDeleteधन्यवाद
"very touching poetry"
ReplyDeleteregards
बहेतरीन पोस्ट। संवेदना से भरे इस लेखक को सलाम।
ReplyDeleteवाह क्या खूबसूरत कविता है यह। मजा आ गया पढ कर।हमने तो अभी हिन्दी में लिखना दो चार साल से शुरु किया है।
ReplyDeleteहम वैसे तो इंगलिश में लिखते है"सुलेखा ब्लॉग" पर।मैं उम्मीद करता हूं कि आप अब तशरीफ लाएंगे मेरे ब्लाग
"थाट मशीन" पर। यह मेरा हिन्दी रचनाओं का ब्लॉग है। दूसरा इंगलिश की रचनाओं क ब्लॉग है। नाम है "स्टेम॓।
कृप्या आप मेरी हिन्दी रचनाएं भी पढें और टिप्पणी किजीए। मेरा लिंक हैः-
http://rajee7949.blogspot.com/
धन्याबाद। "राजी कुशवाहा"
बहुत सुंदर!
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता है भाई
ReplyDeleteसाधुवाद
कहां फंसे हुये हो भाई ?
ReplyDeleteकहां फंसे हुये हो भाई ?
ReplyDeletehriday ki pida ko uker dala aapne...
ReplyDeleteNew Post - एहसास अनजाना सा.....