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02 October, 2008

मेरे चमन को लगी ये किसकी नजर





मेरे चमन को लगी ये किसकी नजर,
किसने फैलाई दहशत की आग,
गुलशन मेरा खामोश कर दिया,
फैला के हर जगह, खौ़फ की हवा।


आज तड़के आए थे सब अपने,
पूछने मेरे दिल का हाल,
अपने ही लगे गुनहगार मुझे,
अपनों पर ही न किया ऐतबार।

ऐ खुदा, ऐ मौला, ऐ परवरदिगार मेरे,
बख्श मेरी आंखों पर, अक्ल की चादर,
कर सकूं, सब अपनों पर यंकी मैं,
कर सकूं खुद पर ऐतबार।


आपका अपना
नीतीश राज
(फोटो-सभार गुगल)

15 comments:

  1. मार्मिक कविता... बधाई।

    आज गान्धी जयन्ती है... राष्ट्रपिता को नमन्।

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  2. ...अपनों से अब एतबार खत्म हुआ जाता है ..कैसा माहौल है यह अब ..अच्छी लगी आपकी यह रचना

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  3. आपकी रचना बहुत भावुक है। बहुत ही सुन्दर

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  4. एक अच्छी कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद
    गजल की क्लास चल रही है आप भी शिरकत कीजिये www.subeerin.blogspot.com


    वीनस केसरी

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  5. अति सुन्दर रचना,
    धन्यवाद

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  6. बहेतरीन पोस्ट। संवेदना से भरे इस लेखक को सलाम।

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  7. वाह क्या खूबसूरत कविता है यह। मजा आ गया पढ कर।हमने तो अभी हिन्दी में लिखना दो चार साल से शुरु किया है।

    हम वैसे तो इंगलिश में लिखते है"सुलेखा ब्लॉग" पर।मैं उम्मीद करता हूं कि आप अब तशरीफ लाएंगे मेरे ब्लाग

    "थाट मशीन" पर। यह मेरा हिन्दी रचनाओं का ब्लॉग है। दूसरा इंगलिश की रचनाओं क ब्लॉग है। नाम है "स्टेम॓।

    कृप्या आप मेरी हिन्दी रचनाएं भी पढें और टिप्पणी किजीए। मेरा लिंक हैः-

    http://rajee7949.blogspot.com/

    धन्याबाद। "राजी कुशवाहा"

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  8. बहुत अच्छी कविता है भाई
    साधुवाद

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