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20 September, 2008

एक कमरा छोटा सा, मेरा अपना

एक कमरा छोटा सा, अपना सा,
कुछ चुनिंदा किताबें
इधर भी, उधर भी,
कुछ पन्ने यहां भी, वहां भी।
एक सपना लिए हुए
कुछ मेरे मन के
कुछ उन के,
जो इसमें पहले रह चुके
उन चुनिंदा लफ्जों के बीच,
मेरा बिस्तर।

बिस्तर पर मैं,
तकिया-चादर लगाए,
सिरहाने से उठता धुआं
एश्ट्रे से, सिगरेट का।
छूता,
उत्तर-दक्षिण वेयतनाम को
बांटता लाल झील को
वहीं, थोड़ा पास ही
बिखरे सिगरेट के
खुले-अधखुले पैकेट।

एक कोना
आज-कल-बरसों की खबरों का।
ठीक जेल में उठे रोटी के अंबार
की तरह रखे अखबार।
दिन-ब-दिन उन पर
चढ़ती धूल की परत,
फिर भी एहसास कराते
अपनी मौजूदगी का।

कुछ ऊंचाई पर लगी रस्सी
अपने उपर सहती बोझ कपड़ों का
और सहती,
उनमें से उठती बदबू को।


एक कमरा छोटा सा, अपना सा
जिसमें रहता था कभी मैं।

आपका अपना

नीतीश राज

(खूब कोशिश की अपनी ही फोटो लगाऊं लेकिन लगा नहीं पाया, अपलोड होने में दिक्कत दे रही थी, तो इसी से काम चलाइए।
फोटो साभार-गूगल)

10 comments:

  1. बहुत खूब. आपके कमरे की सैर भी हो गयी इसी बहाने से.

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  2. वाह भई, बहुत बढ़िया.

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  3. मजा आ गया आप का कमरा देख कर.
    धन्यवाद

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  4. bahut hi apnapan liye hue aatmik varnan laga....choti choti cheezen bhi kabhi hriday me ghar kar jaaati hai..........

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  5. जीवंत कर रहे हैं आपके कमरे को यह लफ्ज़

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  6. ek-ek shabd ki ungli thame yun laga,jaise chhote se kamre se awgat ho gai.....jab aatma se likha hai to sab aatmik hai

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  7. bahut badhiya. bhaiapka kamara post me chaa gaya . dhanyawad..

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