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12 September, 2008

क्या कहूं अनजान हूं पर


क्या कहूं अनजान हूं,
पर जानना चाहता हूं मैं,
जानना चाहता हूं, कि,
तुम क्या सोचती हो?

उस बारे में, जिस बारे में,
मैं, अभी तक अनभिज्ञ हूं
उस पीड़ा के बारे में,
जिसकों सहा है सिर्फ नारी ने।
वो दर्द होता है अपना, पर,
उसकी महक होती सब जगह
उसकी महक से महकता गुलशन,
महकती सारी जमीं
एक जन्म से,
तुम महकी, हम महके
महका सारा संसार।
...............
आपका अपना
नीतीश राज
(फोटो सभार गुगल)

8 comments:

  1. क्या कहूं अनजान हूं,
    पर जानना चाहता हूं मैं,
    जानना चाहता हूं, कि,
    तुम क्या सोचती हो?

    उस बारे में, जिस बारे में,
    मैं, अभी तक अनभिज्ञ हूं
    उस पीड़ा के बारे में,
    जिसकों सहा है सिर्फ नारी ने।
    bahut sunder....
    or photo....cochi coh

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  2. प्यारी फोटो और सुन्दर रचना के लिए बधाई।

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  3. उसकी महक से महकता गुलशन,
    महकती सारी जमीं
    एक जन्म से,
    तुम महकी, हम महके
    महका सारा संसार।

    फोटो ने मन मोह लिया और कविता बहुत अच्छी भाव पूर्ण है

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  4. आपने सही कहा-
    मैं, अभी तक अनभिज्ञ हूं
    उस पीड़ा के बारे में,
    जिसकों सहा है सिर्फ नारी ने।

    और इस दर्द को ठीक से महसूस करने की लि‍ए अगले जनम में नारी के रूप में जन्‍म लेना पड़ेगा। और मुझे नहीं लगता कि‍ कोई ऐसी हि‍म्‍मत दि‍खाएगा।

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  5. ye peedha to ek nari ki hai
    sahan shakti main wahi aage hain

    bhaut ghari kavita

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  6. बहुत ही सुन्दर ओर चित्र के साथ आप की कविता मे चार चांद लग गये ,धन्यवाद

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  7. kavita निश्चित ही सराहनीय है.
    कभी समय मिले तो हमारे भी दिन-रात आकर देख लें:

    http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
    http://hamzabaan.blogspot.com/
    http://saajha-sarokaar.blogspot.com/

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  8. वाह क्या बात है भाई.. साधुवाद..

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