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03 September, 2008

जी लो, जिंदगी एक बार फिर।



तुम चुप क्यों हो,
क्यों हो उदास तुम,
कहां चली गई है हंसी तुम्हारी।

पहले तो हंसती थी तुम,
तुम करती थी खूब बातें,
बोलती, तो चुप ना होती थी तुम।

माना चांद पर दाग है
तुम्हारे चेहरे पर ना था कोई दाग
अब क्यों मुरझा गया है फूल ये।

मेरे लिए ना सही
खुश रहो खुद के लिए
जी लो, जिंदगी एक बार फिर।

आपका अपना
नीतीश राज
(फोटो साभार-गूगल)

17 comments:

  1. अच्‍छी रचना। धन्‍यवाद।

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  2. मेरे लिए ना सही
    खुश रहो खुद के लिए
    जी लो, जिंदगी एक बार फिर।
    ..bahut acchey....badi baat...

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  3. मेरे लिए ना सही
    खुश रहो खुद के लिए
    जी लो, जिंदगी एक बार फिर।

    बहुत सुंदर संदेश दिया है आपने इस कविता के माध्यम से

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  4. माना चांद पर दाग है
    तुम्हारे चेहरे पर ना था कोई दाग
    अब क्यों मुरझा गया है फूल ये।

    बहुत उम्दा भाई नीतिश जी !
    धन्यवाद !

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  5. नीतिश जी बहुत खूब लिखा है आप ने बधाई ..

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  6. ५ दिन की लास वेगस और ग्रेन्ड केनियन की यात्रा के बाद आज ब्लॉगजगत में लौटा हूँ. मन प्रफुल्लित है और आपको पढ़ना सुखद. कल से नियमिल लेखन पठन का प्रयास करुँगा. सादर अभिवादन.

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  7. मेरे लिए ना सही
    खुश रहो खुद के लिए
    जी लो, जिंदगी एक बार फिर।
    "beautiful words, very positive lines, liked it"
    Regards

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  8. बहुत अच्छा लिखा है । सस्नहे

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  9. "खुश रहो खुद के लिए"
    लाख टके की बात कही है आपने...बहुत सुंदर भावः पूर्ण कविता...बधाई
    नीरज

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  10. एक प्यारी संवेदना

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  11. Kiske liye hai ye kawita bitiya ke liye ? bahut hi sunder.

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