तुम चुप क्यों हो,
क्यों हो उदास तुम,
कहां चली गई है हंसी तुम्हारी।
पहले तो हंसती थी तुम,
तुम करती थी खूब बातें,
बोलती, तो चुप ना होती थी तुम।
माना चांद पर दाग है
तुम्हारे चेहरे पर ना था कोई दाग
अब क्यों मुरझा गया है फूल ये।
मेरे लिए ना सही
खुश रहो खुद के लिए
जी लो, जिंदगी एक बार फिर।
आपका अपना
नीतीश राज
(फोटो साभार-गूगल)
प्यारी कविता
ReplyDeleteअच्छी रचना। धन्यवाद।
ReplyDeleteमेरे लिए ना सही
ReplyDeleteखुश रहो खुद के लिए
जी लो, जिंदगी एक बार फिर।
..bahut acchey....badi baat...
मेरे लिए ना सही
ReplyDeleteखुश रहो खुद के लिए
जी लो, जिंदगी एक बार फिर।
बहुत सुंदर संदेश दिया है आपने इस कविता के माध्यम से
बहुत सुन्दर रचना है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ....
ReplyDeleteमाना चांद पर दाग है
ReplyDeleteतुम्हारे चेहरे पर ना था कोई दाग
अब क्यों मुरझा गया है फूल ये।
बहुत उम्दा भाई नीतिश जी !
धन्यवाद !
नीतिश जी बहुत खूब लिखा है आप ने बधाई ..
ReplyDelete५ दिन की लास वेगस और ग्रेन्ड केनियन की यात्रा के बाद आज ब्लॉगजगत में लौटा हूँ. मन प्रफुल्लित है और आपको पढ़ना सुखद. कल से नियमिल लेखन पठन का प्रयास करुँगा. सादर अभिवादन.
ReplyDeleteAchhi lagi rachna.
ReplyDeletebahut khoob......
ReplyDeleteमेरे लिए ना सही
ReplyDeleteखुश रहो खुद के लिए
जी लो, जिंदगी एक बार फिर।
"beautiful words, very positive lines, liked it"
Regards
very nice....
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है । सस्नहे
ReplyDelete"खुश रहो खुद के लिए"
ReplyDeleteलाख टके की बात कही है आपने...बहुत सुंदर भावः पूर्ण कविता...बधाई
नीरज
एक प्यारी संवेदना
ReplyDeleteKiske liye hai ye kawita bitiya ke liye ? bahut hi sunder.
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