हर तरफ हाहाकार, चित्कार
भूख से तड़पते लोग,
खुद को बचाने की तड़प
अपनों को बचाने की जद्दोजहद,
पहले खुद को बचाएं या उनको
या सुनें अपने अंतरमन को,
हर तरफ है तड़प।
गुम हुईं बच्चों की किलकारी
उनके रोने से कांपता है दिल
पर अब तो वो रोते भी नहीं
सिसकियों में जो बदला रुदन
कई दिनों से खाया नहीं कुछ
दूध भी नहीं उतर रहा
बूंद बूंद कर पेट भरे मां
हर जगह हाहाकार मचा।
चारों ओर बस एक ही गूंज
'भूखे हैं खाना दे दो'
'सहा नहीं जाता है अब'
'कोई तो बचा लो हमको'
बचाने वालों की भी, आंखें हैं नम
ऊपर वाला भी रो रहा है
उसके रोने से बरपा है क़हर
हम रो रहे हैं
सिसक रहे हैं
अब तो कर, ओ ऊपर वाले
हम पर रहम।
भूख से तड़पते लोग,
खुद को बचाने की तड़प
अपनों को बचाने की जद्दोजहद,
पहले खुद को बचाएं या उनको
या सुनें अपने अंतरमन को,
हर तरफ है तड़प।
गुम हुईं बच्चों की किलकारी
उनके रोने से कांपता है दिल
पर अब तो वो रोते भी नहीं
सिसकियों में जो बदला रुदन
कई दिनों से खाया नहीं कुछ
दूध भी नहीं उतर रहा
बूंद बूंद कर पेट भरे मां
हर जगह हाहाकार मचा।
चारों ओर बस एक ही गूंज
'भूखे हैं खाना दे दो'
'सहा नहीं जाता है अब'
'कोई तो बचा लो हमको'
बचाने वालों की भी, आंखें हैं नम
ऊपर वाला भी रो रहा है
उसके रोने से बरपा है क़हर
हम रो रहे हैं
सिसक रहे हैं
अब तो कर, ओ ऊपर वाले
हम पर रहम।
आपका अपना
नीतीश राज
bihar kii halat par aapki kavita ne dravit kar diya, main ek din ki salary kal hi prim.min.rahat.kosh me doonga
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना है आपकी।
ReplyDeleteहम भी भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वो रहम करे।
आपकी सोच बहुत ही अच्छी है कोमन मैन। हम सब को कुछ ना कुछ जरूर करने की जरूरत है बिहार के लिए। बिहरा में ये बाढ़ नहीं प्रलय है। धन्यवाद आपका
ReplyDeleteबिहार की हालत पर लिखी रचना वहां के दिखाये गए चित्रों सी दिल को विचलित कर गई ..कहर इस तरह जब टूटता है तब लगता है कि यूँ कुदरत के साथ छेड़ छाड़ आख़िर मनुष्य को इसी तरह के भयवाह अंत की और ले जायेगी ...
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना है .हम सब को कुछ ना कुछ जरूर करने की जरूरत है बिहार के लिए...
ReplyDeleteभाई नतीशि जी , बहुत ही भयकरं स्थिति हे, केसे लोग गुजारा करते होगे, वहा तो पहले से ही गरीबी हे..... क्यो भगवान इतनी परीक्षा लेता हे
ReplyDeleteमे तो भगवान से यही प्राथना करता हु, दुनिया मे सभी सुखी रहे.
नितीश जी,बहुत ही संवेदनशील रचना.बधाई
ReplyDeleteआलोक सिंह "साहिल"
bagwan jarur raham karegein.
ReplyDeleteअब तो कर, ओ ऊपर वाले
ReplyDeleteहम पर रहम।
बहुत संवेदनशील!
क्या कहे प्रकति की इस विनाश लीला को देख मन दहल गया है......ऊपर से मानवीय विवशता.लालच ,राजनीती ..इतने लाखो लोग चपेट में है ओर फ़िर भी राष्ट में चेतना नही ........
ReplyDeleteऊपर वाला भी रो रहा है
ReplyDeleteउसके रोने से बरपा है क़हर
हम रो रहे हैं
सिसक रहे हैं
अब तो कर, ओ ऊपर वाले
हम पर रहम।
' OH very painful too much, and how helpless we are, that is much more painful"
Regards
ऊपर वाला भी रो रहा है
ReplyDeleteउसके रोने से बरपा है क़हर
हम रो रहे हैं
सिसक रहे हैं
अब तो कर, ओ ऊपर वाले
हम पर रहम।
अच्छा और सही लिखा है।