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24 August, 2008

“मैं”



क्या करूं की दिशाहीन सा चलता मैं
कभी लगे की रास्ता मिल गया
पर तभी रास्ते से भटकता, मैं।


रास्ते में मिले कभी पत्थर
तो कभी मिले फूल,
पत्थरों से टकराता हुआ
फूलों से मिलता हुआ
कभी रोया सा,
आंसुओं से सीचता बगिया को मैं,
कभी एक बूंद आंसूं को रूंधता गला मेरा।

मेरी दुनिया मुझे उदास लगती कभी,
कभी इन मुस्कुराहटों, इन उदासियों से
उभरता मैं।
कभी उतरता गहरे समंदर में
फिर उभरता वापस
और यूं हीं लहरों में डूबता-उभरता, मैं।

सांझ ढले जब सूरज सोने जाता
अपने सपनों को पत्थर पर रख
उसका अनुकरण करता मैं,
सुबह सूरज फिर भर अपनी मुठी
सपने वापस करता मुझको
उन्हें फिर अपनी आंखों में
समेट कर खुश होता, ‘मैं’।

आपका अपना
नीतीश राज
सभी को कृष्ण जन्मोत्सव की बधाई।

11 comments:

  1. सादगी से भरी कवि‍ता
    सच्‍चे दि‍ल से आत्‍माभि‍व्‍यक्‍ति‍।
    नीति‍श जी,एक बात और,
    आपने वि‍पश्‍यना के लि‍ए योग्‍यता और खर्च के बारे में पूछा था। योग्‍यता- साधना में (सुवि‍धानुसार कि‍सी भी आसन में) बैठे रहने का धीरज, जो अभ्‍यास से आ जाएगा। साथ में चुप रहने का धीरज। खर्च- मात्र आने जाने का / खाना- रहना मुफ्त। शेष्‍ा मेरे अगली पोस्‍ट से वहॉं का मेरा अनुभव जाने।

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  2. जन्माष्टमी की बधाई !
    सुंदर अभिव्यक्ति ! धन्यवाद !

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  3. धन्यवाद जीतेंद्र भगत जी अगली पोस्ट के इंतजार में ...।

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  4. बहुत सुंदर! आपको भी जन्माष्टमी की बधाई!

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  5. मैं की बहुत ही बढिया व्याख्या की है !
    बहुत बढिया कविता ! शुभकामनाएं !

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  6. सांझ ढले जब सूरज सोने जाता
    अपने सपनों को पत्थर पर रख
    उसका अनुकरण करता मैं,
    सुबह सूरज फिर भर अपनी मुठी
    सपने वापस करता मुझको
    उन्हें फिर अपनी आंखों में
    समेट कर खुश होता, ‘मैं’।

    जन्माष्टमी की बधाई ..सुंदर लगी आपकी यह कविता

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  7. आपको जन्माष्टमी पर्व की
    बधाई एवं शुभकामनाएं
    बहुत ही सुन्दर कविता

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  8. सुबह सूरज फिर भर अपनी मुठी
    सपने वापस करता मुझको
    उन्हें फिर अपनी आंखों में
    समेट कर खुश होता, ‘मैं’।

    " beautiful, very nice expressions, liked reading it ya"
    Regards

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  9. भावुक रचना अति सन्दर

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