यदि पसंद है तो हमसफर बनें

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24 August, 2008

“मैं”



क्या करूं की दिशाहीन सा चलता मैं
कभी लगे की रास्ता मिल गया
पर तभी रास्ते से भटकता, मैं।


रास्ते में मिले कभी पत्थर
तो कभी मिले फूल,
पत्थरों से टकराता हुआ
फूलों से मिलता हुआ
कभी रोया सा,
आंसुओं से सीचता बगिया को मैं,
कभी एक बूंद आंसूं को रूंधता गला मेरा।

मेरी दुनिया मुझे उदास लगती कभी,
कभी इन मुस्कुराहटों, इन उदासियों से
उभरता मैं।
कभी उतरता गहरे समंदर में
फिर उभरता वापस
और यूं हीं लहरों में डूबता-उभरता, मैं।

सांझ ढले जब सूरज सोने जाता
अपने सपनों को पत्थर पर रख
उसका अनुकरण करता मैं,
सुबह सूरज फिर भर अपनी मुठी
सपने वापस करता मुझको
उन्हें फिर अपनी आंखों में
समेट कर खुश होता, ‘मैं’।

आपका अपना
नीतीश राज
सभी को कृष्ण जन्मोत्सव की बधाई।