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05 August, 2008

डरता हूं मैं, उस मजाक से


अंधेरे में पड़ा मेरा मन
पूछता है मुझसे,
क्यों सैलाब की तरह जलता है
कंदराओं में।

निकल जा बाहर
इस घुटन से
इस तड़प से।

फिर सोचता है
मेरा मन,
निकल गया बाहर
तो उड़ेंगी धूल राहों में।

पूछ कर फासला
मेरी मंजिल का,
उड़या था मजाक किसी ने मेरा,
डरता हूं मैं, उस मजाक से।
कहीं फिर से, उड़े ना मजाक
मेरे ख्यालों-विचारों के गहरे समंदर का।
डरता हूं मैं।
आपका अपना
नीतीश राज

11 comments:

  1. बहुत उम्दा...वाह, नितिश भाई.

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  2. मजाक से डरना भी चाहिये, क्‍योकि आप करोगे तो पाओगे भी। :)

    अच्‍छा लिखा है

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  3. बिल्कुल सही लिखा है भाई. तेज़ हवा में भी घुटन होती है कभी कभी ... सच है .. लोग मजाक ही उडाते है आप की हालत का ...... मजाक ही उडायेंगे.

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  4. फिर सोचता है
    मेरा मन,
    निकल गया बाहर
    तो उड़ेंगी धूल राहों में।


    मजाक बनाना दुनिया की फितरत है ...अच्छी लगी आपकी यह कविता ..

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  5. bahut hi sunder rachna dil ko chhu gayi

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  6. उम्दा लेखन का परिचय करती है आपकी ये रचना.. बहुत ही भावपूर्ण

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  7. बहुत बेहतरीन रचना है नितिश जी.

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  8. बहुत अच्छी रचना! यदि आपकी भावनाएँ, विचार किसी लायक हैं तो मजाक तो उड़ेगा ही। शायद किसी भी भाव का मूल्य इसीसे पता चलेगा कि हल्के लोग हल्के से ले रहे हैं या नहीं। यदि ले रहे हैं तो शायद भाव विशेष है, बहुमूल्य है।
    घुघूती बासूती

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  9. John14:6
    Jesus saith unto him, I am the way, the truth, and the life: no man cometh unto the Father, but by me.

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  10. B - BASIC
    I - INFORMATION
    B - BEFORE
    L - LEAVING
    E – EARTH

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  11. James3:3
    Behold, we put bits in the horses' mouths, that they may obey us; and we turn about their whole body.
    James3:4
    Behold also the ships, which though they be so great, and are driven of fierce winds, yet are they turned about with a very small helm, whithersoever the governor listeth.
    James3:5
    Even so the tongue is a little member, and boasteth great things. Behold, how great a matter a little fire kindleth!
    James3:6
    And the tongue is a fire, a world of iniquity: so is the tongue among our members, that it defileth the whole body, and setteth on fire the course of nature; and it is set on fire of hell.
    James3:7
    For every kind of beasts, and of birds, and of serpents, and of things in the sea, is tamed, and hath been tamed of mankind:
    James3:8
    But the tongue can no man tame; it is an unruly evil, full of deadly poison.
    James3:9
    Therewith bless we God, even the Father; and therewith curse we men, which are made after the similitude of God.
    James3:10
    Out of the same mouth proceedeth blessing and cursing. My brethren, these things ought not so to be.
    James3:11
    Doth a fountain send forth at the same place sweet water and bitter?
    James3:12
    Can the fig tree, my brethren, bear olive berries? either a vine, figs? so can no fountain both yield salt water and fresh.

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