अकेली जिंदगी की उधेड़बुन, और
दो जिंदगी को जोड़ने वाली
फेरों के समय
हाथों से बनी वो गांठ लगी चुन्नी।
दो जिंदगी को जोड़ने वाली
फेरों के समय
हाथों से बनी वो गांठ लगी चुन्नी।
वो जो मेरे लिए सारी जिंदगियों को
पीछे छोड़ आई थी
सिर्फ एक जिंदगी के लिए।
पीछे छोड़ आई थी
सिर्फ एक जिंदगी के लिए।
उसकी आंखें, लगी रांहों पर
राहों में से निकलती एक राह,
जिसका इंतजार तकती एक राह।
राहों में से निकलती एक राह,
जिसका इंतजार तकती एक राह।
अपनी धुरी को बचाने की एक आस करता, मैं,
उसकी आंखों से मैं, एक ही केंद्र बिंदु की तरह
खींचता मैं असहाय, हारा हुआ अस्तित्व लेकर,
अपने उसी एक बिंदु के साथ
जो तक रहा है राह,
दूसरे की तरफ बढ़ता,
मैं और मेरा बिंदु।
उसकी आंखों से मैं, एक ही केंद्र बिंदु की तरह
खींचता मैं असहाय, हारा हुआ अस्तित्व लेकर,
अपने उसी एक बिंदु के साथ
जो तक रहा है राह,
दूसरे की तरफ बढ़ता,
मैं और मेरा बिंदु।
आपका अपना
नीतीश राज
badi gehri baat keh di aapne.
ReplyDeleteअक्सर जब दिल से लिखा जाए.. तो ऐसा ही कुछ बनता है.. बहुत बधाइया
ReplyDeleteवो जो मेरे लिए सारी जिंदगियों को
ReplyDeleteपीछे छोड़ आई थी
सिर्फ एक जिंदगी के लिए।
बहुत सुंदर ..दिल की बात लिखी है आपने तभी सीधे दिल में उतर गई है ..
वो जो मेरे लिए सारी जिंदगियों को
ReplyDeleteपीछे छोड़ आई थी
सिर्फ एक जिंदगी के लिए।
" very very deep thought straight away generated from heart, very touching"
Regards
क्या बात कही आपने।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
वो जो मेरे लिए सारी जिंदगियों को
ReplyDeleteपीछे छोड़ आई थी
सिर्फ एक जिंदगी के लिए।
वाह नीतिश भाई , क्या गहराई
से लिखा है ! बहुत उम्दा !
बधाई !
नीतिश भाई बहुत ही सुन्दर ओर गहरी बात कह दी आप ने,हमारी शुवकामनाये, धन्यवाद सुन्दर कविता के लिये
ReplyDeleteKhoobsurat jazbaaton ka nichor hain ye panktiyaan.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना ।
ReplyDeletebhut gahari rachana. ati uttam.
ReplyDelete