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13 August, 2008

पीछे छोड़ आई थी, ‘वो’, मेरे लिए सब



अकेली जिंदगी की उधेड़बुन, और
दो जिंदगी को जोड़ने वाली
फेरों के समय
हाथों से बनी वो गांठ लगी चुन्नी।

वो जो मेरे लिए सारी जिंदगियों को
पीछे छोड़ आई थी
सिर्फ एक जिंदगी के लिए।

उसकी आंखें, लगी रांहों पर
राहों में से निकलती एक राह,
जिसका इंतजार तकती एक राह।

अपनी धुरी को बचाने की एक आस करता, मैं,
उसकी आंखों से मैं, एक ही केंद्र बिंदु की तरह
खींचता मैं असहाय, हारा हुआ अस्तित्व लेकर,
अपने उसी एक बिंदु के साथ
जो तक रहा है राह,
दूसरे की तरफ बढ़ता,
मैं और मेरा बिंदु।


आपका अपना

नीतीश राज

10 comments:

  1. अक्सर जब दिल से लिखा जाए.. तो ऐसा ही कुछ बनता है.. बहुत बधाइया

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  2. वो जो मेरे लिए सारी जिंदगियों को
    पीछे छोड़ आई थी
    सिर्फ एक जिंदगी के लिए।

    बहुत सुंदर ..दिल की बात लिखी है आपने तभी सीधे दिल में उतर गई है ..

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  3. वो जो मेरे लिए सारी जिंदगियों को
    पीछे छोड़ आई थी
    सिर्फ एक जिंदगी के लिए।

    " very very deep thought straight away generated from heart, very touching"
    Regards

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  4. क्या बात कही आपने।
    बहुत सुन्दर

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  5. वो जो मेरे लिए सारी जिंदगियों को
    पीछे छोड़ आई थी
    सिर्फ एक जिंदगी के लिए।


    वाह नीतिश भाई , क्या गहराई
    से लिखा है ! बहुत उम्दा !
    बधाई !

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  6. नीतिश भाई बहुत ही सुन्दर ओर गहरी बात कह दी आप ने,हमारी शुवकामनाये, धन्यवाद सुन्दर कविता के लिये

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  7. Khoobsurat jazbaaton ka nichor hain ye panktiyaan.

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  8. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना ।

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