शिकवे और गिले करते रहे हम
अपने आप ही से लड़ते रहे हम,
तुमने भी नहीं कही कुछ अपनी
हमें भी गिला कि न कह सके
कुछ हम अपनी।
अपने आप ही से लड़ते रहे हम,
तुमने भी नहीं कही कुछ अपनी
हमें भी गिला कि न कह सके
कुछ हम अपनी।
इप्तदा से ही इज़हारे दिल किया हमने,
इंतहा तक करार न कर सके तुम।
रहा जिंदगी का सफर कुछ यूं
जैसे कहीं पर जर्जर झूलता पुल,
हर कदम डरता रहा, उस पुल पर
हर आहट से छटपटाता रहा,
हर हादसा सहता रहा वो,
हर आंसू को अपने आगोश में लेता रहा,
कुछ टूटता, बिखरता रहा,
मेरी ही तरह
नदी पर जर्जर झूलता वो पुल।
रास्ते पर रखी निगाहें, इंतजार में तेरे
वक्त तो कुछ गुज़रा, कुछ गुजर रहा है
सिर्फ एक बार, .... एक बार
उस पुल को भी अपनी कुछ निशानी दे दो।
आपका अपना
नीतीश राज
"आज फ़िर एक अधुरा नगमा कोई कहानी दे दो , मेरे जीने का जो सहारा बन जाए एक पल की कोई निशानी दे दो..."
ReplyDelete" its a beautiful poetry,liked it"
Regards
"मेरी ही तरह
ReplyDeleteनदी पर जर्जर झूलता वो पुल।"
बहुत उम्दा....
बेहतरीन.....
रास्ते पर रखी निगाहें, इंतजार में तेरे
ReplyDeleteवक्त तो कुछ गुज़रा, कुछ गुजर रहा है
बहुत सुंदर कहा आपने ..इन्तजार के लम्हे और यह भाव बहुत अच्छे लगे आपकी इस रचना में
फ़िर से एक सुन्दर रचना के लिये, आप का दिली धन्यवाद, कोई तो निशानी दे दो, वाह
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है। बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteनदी पर जर्जर झूलता वो पुल।
ReplyDeleteउस पुल को भी अपनी कुछ निशानी दे दो।
क्या खूब लिखा है ! बधाई !
बहुत अच्छी रचना । बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteरास्ते पर रखी निगाहें, इंतजार में तेरे
ReplyDeleteवक्त तो कुछ गुज़रा, कुछ गुजर रहा है
सिर्फ एक बार, .... एक बार
उस पुल को भी अपनी कुछ निशानी दे दो।
ye panktiya bahut achhi lagi...
भाव यों ही व्यक्त होते रहें
ReplyDeleteआप अभिव्यक्त होते रहें
इन्हीं शुभकामनाऒं के साथ
अति सुन्दर!!! वाह!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भाव लिए हुए कविता..... एक दर्द है इस कविता में
ReplyDeleteसुन्दर भाव ..
ReplyDeleteसुदर कविता...