यदि पसंद है तो हमसफर बनें

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16 May, 2009

फिर आज मिले, बिना आहट



मिले तो हैं, पहले भी हम,
फिर आज मिले, बिना आहट,
जिंदगी और हम।

जिंदगी ने पूछा मुझसे,
आकर दबे पांव।
क्यों उदास बैठा,
कहां फंसी तेरी,
जिंदगी की नाव?

मैं, एक भंवर की तरह
लाखों सवालों से घिरा,
जिंदगी की तलाश में
भटकता रहा,
मंजिल की राह में।

कब होगी मुकम्मल
ख्वाहिश संग तलाश मेरी
फिर आज मिले, बिना आहट,
जिंदगी और हम।


आपका अपना
नीतीश राज

10 May, 2009

दबे पांव...दूर कहीं



तुम कहती हो,
तुम्हारे हाथों की लकीरों में मैं नहीं।
मैं कहता हूं,
मेरे मुकद्दर की लकीरें सिर्फ तेरी हैं।

तेरे ख्वाबों में,
मैं ना सही मगर, मेरे ख्वाब में,
सिर्फ तुम ही तुम हो।

तुम गुजर गई, मेरे पास से,
तो यूं लगा मुझे,
कि जिंदगी गुजर गई,
दबे पांव...दूर कहीं।

आपका अपना
नीतीश राज