यदि पसंद है तो हमसफर बनें

17 June, 2009

अब सब फसाना है

दोपहर की धूप से बचने
मेरे कमरे मे आना
वो तेरा एक बहाना था।
पास तुम तो थी
वरना सब अफसाना था।

तेरी जुल्फों की छांव में
तेरी गोद में सर रखना
वो तेरा एक बहाना था।
पास तुम तो थी
वरना सब अफसाना था।

मेरे बालों को सहलाना
साथ मेरे हमेशा रहना
वो तेरा एक बहाना था।
पास तुम तो थी
वरना सब अफसाना था।
आज भी वो तपती दोपहर है
आज भी है वो मेरा कमरा
आज भी है एहसास तेरा,
पर...पास नहीं हो तुम,
बस...अब सब फसाना है।

आपका अपना
नीतीश राज

15 comments:

  1. बहुत सुन्दर, नितिश..आनन्द आ गया.

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  2. क्या बात है हजूर ..हमें लगा इंडिया की हार के गम में तुम कई दिन कंप्यूटर से दूर रहोगे ...ये अंदाज भी निराला है

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  3. नीतिश भाई....बेजोड़ कविता...वाह.
    नीरज

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  4. गज़ब!साब आप तो अखरोट निकले।

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  5. खुशी की बात है कि आपने यह राज जाना है।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  6. आप का फ़साना बहुत सुंदर लगा, बस हम तो वाह वाह ही कहेगे.

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  7. लाल अक्षर के कारण कठिनाई से पढ़ पाया। रचना अच्छी लगी।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  8. बहुत-बहुत ख़ूबसूरत

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  9. नीतिश जी ,

    बहुत खूब लिखा आपने ....बधाई ......!!

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  10. ... प्रभावशाली रचना !!!!

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  11. मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने! अब तो मैं आपका फोल्लोवेर बन गई हूँ इसलिए आती रहूंगी!
    मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है-
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  12. kya baat hai sir ji . padhkar maza aa gaya .. waah shaandar kavita ...

    badhai


    vijay

    pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com

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  13. वरना सब अफसाना था।
    वाह...बहुत खूब

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  14. खुशनुमा अहसास है }। बधाई -शरद कोकस दुर्ग.छ.ग.

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