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14 May, 2009

वो...नहीं आएगी...



वो आएगी, जरूर आएगी,
उसके आने से पहले
हवा मुझ तक, उसकी महक लाएगी।
जैसे, बच्चे तक,
आती मां की महक।

जब भी कोई आहट होती
दिल कहता,
अब तो तुम ही हो
बिस्तर पर पड़े-पड़े,
दिमाग भी कहता
अब तुम ही हो, तुम ही तो हो।

दरवाजे पर होती आहट
तुम ही तो होगी
पर...ये...हवा...।

हवा सहलाती आंचल को मेरे
कहती मुझसे,
आगोश में आजाओ मेरे
हर महक, हर आहट, तुम्हारी होगी।
हर चिल्मन, हर आंगन तुम्हारा होगा...।

जिसका तुमको है इंतजार
उसे खिलना है
किसी और आंगन में
मत कर इंतजार
वो नहीं आएगी।

आपका अपना
नीतीश राज

5 comments:

  1. कभी शेर सुना था मोहब्बत के मारों का:

    अंदाज हूबहू उसकी आवाजे पा का था...
    दरवाजा खोल के देखा, झोंका हवा का था..
    --यही होता है मित्र.

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  2. आपकी कविता बहुत अच्छी लगी , खासकर शुरू की पंक्तियाँ , इतनी अच्छी लगीं कि मैंने आपकी बहुत सारी कवितायें पढ़ डालीं , आप तो सचमुच अपने ब्लॉग के नाम अनुरूप अपनी आत्मा की आवाज को शब्द देने में लगे हैं |

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  3. बहुत सुन्दर , कितनी ही जगह रुक कर सोचने को मजबूर करती |

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  4. Bahut hee bhaavpoorn.....Prem aur peeda dono hee bhavon ko aapne sundar abhivyakti di ghai.
    Sundar rachna hetu aabhaar.

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  5. आनंद आया आपकी इस बेहतरीन रचना को पढकर।

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