अधूरे चांद को देखकर
कभी-कभी लगता है,
रिश्ते भी अक्सर, ऐसे ही अधूरे रहते हैं?
और फिर कभी कभार, यूं ही,
हो जाते हैं पूरे,
कभी-कभी लगता है,
रिश्ते भी अक्सर, ऐसे ही अधूरे रहते हैं?
और फिर कभी कभार, यूं ही,
हो जाते हैं पूरे,
उस चांद की तरह।
फिर अचानक ही,
जिंदगी के पूरे अंबर पर,
फिर अचानक ही,
जिंदगी के पूरे अंबर पर,
वो अलग दिखाई देते हैं,
रिश्ते....
फिर शुरू होता है, वो सफर
रिश्तों को बचाने का।
रिश्तों को बचाने और संवारने की आस
अंबर पर पूरे चांद को सजाने का ख्वाब,
कभी चांद पूरा, तो कभी रिश्ते, और
कभी रिश्ते अधूरे, तो कभी चांद।
रिश्ते....
फिर शुरू होता है, वो सफर
रिश्तों को बचाने का।
रिश्तों को बचाने और संवारने की आस
अंबर पर पूरे चांद को सजाने का ख्वाब,
कभी चांद पूरा, तो कभी रिश्ते, और
कभी रिश्ते अधूरे, तो कभी चांद।
इसी में फंस कर रह जाता है इंसान
और अधूरा हो जाता है
रिश्तों के साथ,
वो 'चांद', एक बार फिर से।
आपका अपना
नीतीश राज
सुन्दर रचना के साथ सुन्दर तस्वीर प्रस्तुत की है।बधाई।
ReplyDeleteरिश्तों को बचाने और संवारने की आस
अंबर पर पूरे चांद को सजाने का ख्वाब,
कभी चांद पूरा, तो कभी रिश्ते, और
कभी रिश्ते अधूरे, तो कभी चांद।
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sundar rachana ke sath sundar tasvir bhi. vah kya baat hai. jari rhe.
ReplyDeleteरिश्तों को बचाने और संवारने की आस
ReplyDeleteअंबर पर पूरे चांद को सजाने का ख्वाब,
कभी चांद पूरा, तो कभी रिश्ते, और
कभी रिश्ते अधूरे, तो कभी चांद।
इसी में फंस कर रह जाता है इंसान
और अधूरा हो जाता है
chaand aur rishte behad khubsuart khyaal buna hai aapne aapki yah rachana mujhe behad pasand aayi bahut khub
अजी यह सब समझ मे आ जाये तो बात ही कया,बहुत सुन्दर रचना हे, धन्यवाद
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