मेरे शब्द हैं मेरी कविता, मेरी कविता है मेरी रूह, और शब्दों में पिरो रहा हूं, अपने और अपने शब्दों की रूह।।
यदि पसंद है तो हमसफर बनें
18 July, 2008
कभी तो, एक बार
देर से हवा का एक झौंका
मुझे बार-बार सहलाता,
झकझोरता हुआ चला जाता है।
कैसे समझाऊं उस झौंके को
कैसे बताऊं उसे मन की कशिश
कि आज, आना है तुमको।
वो आएगी उस झौंके की तरह
जिस ने सुबह से मुझे
कर रखा है परेशान।
यूं...कब से बैठा हुआ हूं,
पड़ा उस झौंके के पशोपेश में
जो मुझे कभी,
ठंडक पहुंचा जाता है,
तो तभी, याद दिला जाता है,
कभी जब, धूप में खड़े होकर मैंने
इंतजार किया था, उस झौंके का।
रोज़...इस जगह पे खड़े होकर
सोचा है उस बेनाम प्यार को।
जो आएगा कभी तो
मेहंदी की तरह...मेरे हाथों पर,
मेरे जिस्म पर,
रच जाएगा, बस जाएगा, बस... कभी तो, एक बार।।
आपका अपना,
नीतीश राज
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment
पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है।