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27 July, 2008

"अपराधबोध"


आज मुझे हुआ क्या है
किस एहसास तले
दबा है मन।
क्यों किया मैंने वो
जो ना था करना,
जो न किया, पहले कभी।

क्यों पहुँचाई ठेस उसे
क्यों दोहराया सवाल अपना
क्यों किया बेचैन उसे
क्यों हुआ बेचैन खुद।

गई रात भी,
बना के याद अपनी,
शायद आए वो सुबह
जब मेरा सामान,
लेकर कोई, बेचैन,
धुली सुबह के साथ
पहुंचाए मुझ तक,
शायद...आए वो ही।
जिसका है इंतजार मुझे....।
आपका अपना
नीतीश राज

2 comments:

  1. क्यों पहुँचाई ठेस उसे
    क्यों दोहराया सवाल अपना
    क्यों किया बेचैन उसे
    क्यों हुआ बेचैन खुद।

    क्या खूब लिखा है आपने....
    वो हंसा तो मंजर सारा मुस्कुरा दिया,
    वो हुआ उदास तो जैसे मैं बेकरार हुआ।

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  2. गई रात भी,
    बना के याद अपनी,
    शायद आए वो सुबह
    जब मेरा सामान,
    लेकर कोई, बेचैन,
    धुली सुबह के साथ
    पहुंचाए मुझ तक,
    शायद...आए वो ही।

    bahut khub...jo bhaav is mein ubhar kar aaye hain wah dil ko chu lete hain ..likhte rahe aapka likha padhana meri adat banti ja rahi hai .:)

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