कौन कहता है कि तुम हसीन नहीं,
तुम आज भी हसीन हो,
मेरी आंखों से एक बार देखो तो।
अब भी दीवाना हूं मैं,
उन अदाओं का, जुल्फों का,
उन आंखों का, उस मुस्कुराहट का,
जिसने तब भी लूटा था
मेरी रातों की नींद को।
कौन कहता है कि तुम हसीन नहीं।
आज भी अच्छी लगती हैं
तुम्हारी बातें मुझे,
तुम्हारा वो खोलकर दुपट्टा लेना,
वो खिलखिलाकर हंसना।
तब भी तो तुम यूं ही थी,
जब पहली बार देखकर
दिया था तुमको करार अपना।
कौन कहता है कि तुम हसीन नहीं।
तब भी तुम चांद नहीं थी,
आज भी नहीं हो,
तब भी ये ही कहता था,
आज भी कहता हूं, पर
चांद जैसी तो हो।
तुम आज भी उतनी ही हसीन हो।
(आज हमारी महबूबा कम संगनी ने कहा,....जब भी देखती हूं इस कंप्यूटर से चिपके रहते हो...अब तो बिल्कुल ध्यान ही नहीं देते....हां, अब मैं 'उतनी' हसीन नहीं रह गई हूं...ना... मार डाला...हमने सोचा बेटा आज तो फंस गए....अरे भई, ये तो सीधे-सीधे चोट थी हम पर... इस बार कुछ नहीं बोले तो घर में महाभारत शुरू होजाएगी और भाड़ में जाएगा शुकून... तुरंत बोले ......."देखो सिर्फ तुम्हारे लिए ही तो लिखते हैं...चाहे तो देख लो"...फिर बन गई ये रचना जो अब है आपके सामने, सिर्फ हमारी उनके लिए)
तुम आज भी हसीन हो,
मेरी आंखों से एक बार देखो तो।
अब भी दीवाना हूं मैं,
उन अदाओं का, जुल्फों का,
उन आंखों का, उस मुस्कुराहट का,
जिसने तब भी लूटा था
मेरी रातों की नींद को।
कौन कहता है कि तुम हसीन नहीं।
आज भी अच्छी लगती हैं
तुम्हारी बातें मुझे,
तुम्हारा वो खोलकर दुपट्टा लेना,
वो खिलखिलाकर हंसना।
तब भी तो तुम यूं ही थी,
जब पहली बार देखकर
दिया था तुमको करार अपना।
कौन कहता है कि तुम हसीन नहीं।
तब भी तुम चांद नहीं थी,
आज भी नहीं हो,
तब भी ये ही कहता था,
आज भी कहता हूं, पर
चांद जैसी तो हो।
तुम आज भी उतनी ही हसीन हो।
(आज हमारी महबूबा कम संगनी ने कहा,....जब भी देखती हूं इस कंप्यूटर से चिपके रहते हो...अब तो बिल्कुल ध्यान ही नहीं देते....हां, अब मैं 'उतनी' हसीन नहीं रह गई हूं...ना... मार डाला...हमने सोचा बेटा आज तो फंस गए....अरे भई, ये तो सीधे-सीधे चोट थी हम पर... इस बार कुछ नहीं बोले तो घर में महाभारत शुरू होजाएगी और भाड़ में जाएगा शुकून... तुरंत बोले ......."देखो सिर्फ तुम्हारे लिए ही तो लिखते हैं...चाहे तो देख लो"...फिर बन गई ये रचना जो अब है आपके सामने, सिर्फ हमारी उनके लिए)
आपका अपना
नीतीश राज
नीतीश राज