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धर्म का ना जात का
हजारों के आघात का
क्यों पनप रहा ये ज़हर
इंसानी जज़्बात का।
करता है छेद लाखों
दिल में मेरे,
जब भी देखता हूं
निशान ‘ताज’ की दीवार का।
आपका अपना
नीतीश राज
(फोटो साभार-गूगल)
मेरे शब्द हैं मेरी कविता, मेरी कविता है मेरी रूह, और शब्दों में पिरो रहा हूं, अपने और अपने शब्दों की रूह।।
बिस्तर पर मैं,
तकिया-चादर लगाए,
सिरहाने से उठता धुआं
एश्ट्रे से, सिगरेट का।
छूता,
उत्तर-दक्षिण वेयतनाम को
बांटता लाल झील को
वहीं, थोड़ा पास ही
बिखरे सिगरेट के
खुले-अधखुले पैकेट।
एक कोना
आज-कल-बरसों की खबरों का।
ठीक जेल में उठे रोटी के अंबार
की तरह रखे अखबार।
दिन-ब-दिन उन पर
चढ़ती धूल की परत,
फिर भी एहसास कराते
अपनी मौजूदगी का।
कुछ ऊंचाई पर लगी रस्सी
अपने उपर सहती बोझ कपड़ों का
और सहती,
उनमें से उठती बदबू को।
एक कमरा छोटा सा, अपना सा
जिसमें रहता था कभी मैं।
आपका अपना
नीतीश राज
(खूब कोशिश की अपनी ही फोटो लगाऊं लेकिन लगा नहीं पाया, अपलोड होने में दिक्कत दे रही थी, तो इसी से काम चलाइए।
फोटो साभार-गूगल)
इप्तदा से ही इज़हारे दिल किया हमने,
इंतहा तक करार न कर सके तुम।
रहा जिंदगी का सफर कुछ यूं
जैसे कहीं पर जर्जर झूलता पुल,
हर कदम डरता रहा, उस पुल पर
हर आहट से छटपटाता रहा,
हर हादसा सहता रहा वो,
हर आंसू को अपने आगोश में लेता रहा,
कुछ टूटता, बिखरता रहा,
मेरी ही तरह
नदी पर जर्जर झूलता वो पुल।
रास्ते पर रखी निगाहें, इंतजार में तेरे
वक्त तो कुछ गुज़रा, कुछ गुजर रहा है
सिर्फ एक बार, .... एक बार
उस पुल को भी अपनी कुछ निशानी दे दो।
आपका अपना
फिर सोचता है
मेरा मन,
निकल गया बाहर
तो उड़ेंगी धूल राहों में।
तेरा पास होना ही काफी है
मेरे चमन को महकाने के लिए,
तेरी एक बात ही काफी है
मुझे तेरा बनाने के लिए।
तेरे ख्याल में जी रहा हूं इस कदर,
तेरी याद ही काफी है अपनाने के लिए।
तेरी नराजगी ही काफी है,
मुझे तड़पाने के लिए।
तेरी उखड़ी हुई एक बात ही काफी है,
मुझे अंदर से हिलाने के लिए।
तेरी आंख से छलकता एक आंसू,
काफी है मुझे रुलाने के लिए।
तेरी एक मुस्कुराहट ही काफी है,
मेरे दिन को बनाने के लिए।
इसी उम्मीद पर जी रहा हूं,
तेरी जिन्दगी का, एक पल ही काफी है
मुझे, मुझसे मिलाने के लिए।।
आपका अपना,
नीतीश राज